मुंबई। आमिर खान और जियो स्टूडियोज की फिल्म लापता लेडीज को 97वें एकेडमी अवॉर्ड्स के लिए भारत की आधिकारिक प्रविष्टि चुना गया है, यानी किरन राव निर्देशित यह फिल्म बेस्ट इंटरनेशनल फीचर फिल्म (पूर्व में बेस्ट फॉरेन लैंग्वेज फिल्म) कैटेगरी में दुनियाभर की फिल्मों से मुकाबला करेगी।
हालांकि, अब ऑस्कर के लिए फिल्में चुनने वाली संस्था फिल्म फेडरेशन ऑफ इंडिया के इस चयन पर भी सवाल उठ रहे हैं। इन चर्चाओं के बीच जानते हैं कि 1957 से लेकर अब तक जो फिल्में भारत की ऑफिशियल एंट्री के तौर पर ऑस्कर्स में भेजी गईं, उनका क्या हाल रहा
ऑफिशियल एंट्री में चुनी गई तीन फिल्मों का सफर नॉमिनेशंस तक
1957 से 2023 तक बेस्ट इंटरनेशनल फीचर फिल्म कैटेगरी में भारत की ओर से भेजी गई फिल्मों में सिर्फ 3 नॉमिनेशन तक पहुंच पाई हैं। 1957 में पहली बार भारत ने मदर इंडिया के साथ ऑस्कर में दावेदारी ठोकी थी। इस फिल्म को नॉमिनेशन मिला।
1988 में एनएफडीसी और दूरदर्शन के सहयोग से बनी मीरा नायर की फिल्म सलाम बॉम्बे और 2001 में आमिर खान की फिल्म लगान ऑस्कर नॉमिनेशंस कर पहुंची थीं। गौरतलब है कि नॉमिनेशंस तक पहुंचने वाली तीनों ही फिल्में हिंदी भाषा की हैं।
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फिल्म फेडरेशन ऑफ इंडिया ने सिनेमा में विकास के साथ अन्य भाषाओं की फिल्मों को भी ऑस्कर में भेजने की पहल की। हालांकि, सबसे ज्यादा फिल्में हिंदी भाषा की ही रहीं। 1957 से 2024 तक, भाषावार ऑस्कर में जाने वाली फिल्मों की संख्या देखें तो लिस्ट इस प्रकार बनती है-
- हिंदी- 34 (लापता लेडीज मिलाकर)
- तमिल- 10
- मलयालम- 4
- मराठी- 3
- गुजराती- 2
- बंगाली- 2 (दोनों सत्यजीत रे की)
- तेलुगु- 1 (1986 में स्वाति मुथ्यम )
- असमी-1 (2018 में विलेज रॉकस्टार्स)
बीच में कई बार भारत ने ऑस्कर्स में अपनी ऑफिशियल एंट्री नहीं भेजी थी। यह साल थे- 1960, 1961, 1964, 1970, 1975, 1976, 1979, 1981-1983 और 2003।
सिर्फ 29 फिल्मों में से चुनी गई लापता लेडीज
अगर लापता लेडीज को ऑस्कर में प्रतिनिधित्व के लिए चुना गया है तो कहा जा सकता है कि 2023 और 2024 में रिलीज हुई सभी भारतीय फिल्मों में सर्वश्रेष्ठ है। इस बात पर बहस हो सकती है, क्योंकि हर साल कई ऐसी फिल्में ऑस्कर अवॉर्ड्स के लिए चयन करने वाली समिति तक नहीं पहुंच पातीं, जो हर लिहाज से प्रबल दावेदार होती हैं।
चयन समिति सिर्फ उन फिल्मों से ऑस्कर के लिए चुनती है, जो उस तक पहुंचती हैं। मसलन, ऑस्कर्स 2025 के लिए समिति के पास सिर्फ 29 फिल्में पहुंचीं, जिनमें से लापता लेडीज का चयन किया गया। भारतीय फिल्म इंडस्ट्री में एक साल में लगभग दो हजार फिल्में अलग-अलग भाषाओं में बनती हैं और ऑस्कर्स के लिए जब चुनने की बारी आती है तो पांच फीसदी फिल्मों को भी नहीं परखा जाता।
अब सवाल यह है कि क्या ऑस्कर में भारत की आधिकारिक प्रविष्टि चुनने की प्रक्रिया में बदलाव की जरूरत है?
हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक, लापता लेडीज के चुनने के पीछे समिति के अध्यक्ष जाहनु बरुआ ने कहा- सबसे जरूरी यह है कि ऑस्कर के लिए ऑफिशियल एंट्री ऐसी फिल्म को बनाया जाए, जो भारत का प्रतिनिधित्व करती हो। हो सकता है कि 29 फिल्मों के अलावा भी कोई ऐसी फिल्म हो, जो इससे बेहतर हो, लेकिन ज्यूरी तो उन्हीं में से चुन सकती है, जो उसे दी गई हैं।
विदेशी प्रोडक्शंस में भारतीयों ने जीते पुरस्कार
कहीं ना कहीं, यह भी एक वजह है कि भारत तीन बार ऑस्कर की नॉमिनेशंस की लिस्ट तक तो पहुंचा, मगर अवॉर्ड नहीं जीता। जिन भारतीयों ने अब तक ऑस्कर अवॉर्ड्स जीते हैं, वो या तो विदेशी प्रोडक्शंस हैं या फिर वो फिल्में भारत की आधिकारिक एंट्री नहीं थीं, मिसाल के तौर पर गांधी, स्लमडॉग मिलियनरे और आरआरआर।
1982 की गांधी इंडो-ब्रिटिश प्रोडक्शन फिल्म थी, जिसका निर्माण और निर्देशन रिचर्ड एटनबरो ने किया था। इस फिल्म में कॉस्ट्यूम डिजाइनिंग के लिए भानु अथैया ने ऑस्कर जीता। वो पहली भारतीय हैं, जिन्होंने यह पुरस्कार अपने नाम किया था। इसी तरह 2008 में आई स्लमडॉग मिलियनरे ब्रिटिश प्रोडक्शन फिल्म थी, जिसके लिए एआर रहमान, गुलजार और रेसुल पुकुट्टी ने ऑस्कर जीते थे।
आरआरआर नहीं थी भारत की ऑफिशियल एंट्री
वहीं, तेलुगु फिल्म आरआरआर को ऑस्कर तक इसके निर्माता और निर्देशक एसएस राजामौली लेकर गये थे। इस फिल्म के नाटू नाटू गाने के लिए बेस्ट ओरिजिनल सॉन्ग कैटेगरी में म्यूजिक डायरेक्टर एमएम कीरवाणी और लिरिक्स के लिए चंद्रबोस को ऑस्कर पुरस्कार मिला। उस साल भारत की आधिकारिक प्रविष्टि गुजराती फिल्म छेलो शो थी, जिसे पान नलिन ने निर्देशित किया था।
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यह फिल्म नॉमिनेशंस तक भी नहीं पहुंच सकी। अलबत्ता, शॉर्ट लिस्ट में जगह बनाने में जरूर सफल रही थी।