- कलाकार- विक्रांत मैसी, दीपक डोबरियाल, आकाश खुराना, दर्शन जरीवाला आदि।
- निर्देशक- आदित्य निम्बलकर
- लेखक- बोधायन रॉयचौधरी
- निर्माता- जिओ स्टूडियोज, मैडॉक फिल्म्स
- प्लेटफॉर्म- नेटफ्लिक्स
- स्टार- **1/2
- अवधि- 2 घंटा 4 मिनट
मुंबई। 2006 में दिल्ली से सटे नोएडा की एक कोठी के आस-पास जमीन और नाले से निकले बच्चों के अंगों और कंकालों ने पूरे देश को दहला दिया था। इस मामले की परतें जैसे-जैसे खुलती गईं, अपराध की जघन्यता और सिस्टम की उदासीनता ने पूरी इंसानियत को शर्मसार कर दिया था।
इलाके में गायब हो रहे बच्चों की शिकायतों के प्रति स्थानीय पुलिस की लापरवाही आत्मा को झकझोरने वाली थी। इस केस की तफ्तीश के दौरान कई थ्योरीज सामने आईं, जिनमें मासूमों के साथ दुष्कर्म से लेकर अंगों के कारोबार और नरभक्षी होने की जानकारियां सामने आई थीं। हालांकि, इन्हें अदालत में साबित नहीं किया जा सका था।
निठारी कांड के नाम से कुख्यात हुए इस सनसनीखेज केस से प्रेरणा लेकर जिओ स्टूडियोज और मैडॉक फिल्म्स ने क्राइम थ्रिलर सेक्टर 36 बनाई है, जो शुक्रवार को नेटफ्लिक्स पर स्ट्रीम हो चुकी है। आदित्य निम्बलकर ने फिल्म का निर्देशन किया है, जबकि लेखन की जिम्मेदारी बोधायन रॉयचौधरी ने सम्भाली है।
सेक्टर 36 के दृश्य मुख्य रूप से आरोपियों की क्रूरता और मानसिक रूप से विकृति और पुलिस विभाग की शिथिलता को दिखाते हैं। देशभर में इस केस की प्रतिध्वनि पर फिल्म फोकस नहीं करती। घटनास्थल भी नोएडा के बजाय शाहदरा शिफ्ट कर दिया गया है। सच्ची घटना से प्रेरित फिल्म के दृश्य लेखक ने अपनी सुविधा के हिसाब से गढ़े हैं।
क्या है सेक्टर 36 की कहानी?
कहानी के केंद्र में सेक्टर 36 की कोठी का नौकर प्रेम सिंह (विक्रांत मैसी) है, जो केबीसी जैसे शो सब बनेंगे करोड़पति का फैन है और इस बात से निराश है कि उस जैसे लोगों को मौका नहीं मिलता। प्रेम पूरी कोठी में अकेला रहता है। पास स्थि बस्ती राजीव कैम्प के बच्चों को किडनैप करके उन्हें बेहरमी से मारकर लाश के टुकड़े-टुकड़े करके नाले में फेंक देता है, या पास की जमीन में गाड़ देता है।
पैसा कमाने के लिए पास स्थित नर्सिंग होम के कम्पाउंडर की मदद से अंगों के कारोबार से जुड़ा है। कोठी का मालिक उम्रदराज मालिक बलवीर बस्सी (आकाश खुराना) अय्याश बिजनेस है, जिसका परिवार करनाल में रहता है। वो कभी-कभी सेक्टर 36 की कोठी में आता है। प्रेम उसका राजदार है। दर्जनों बच्चे गायब होने के बाद भी पुलिस की असंवेदनशीलता चरम पर है।
कभी हाथ की अंगुलियां मिलती भी हैं तो पुलिस इंस्पेक्टर राम चरण पांडेय (दीपक डोबरियाल) उसे जानवर की अंगुलियां बताकर रफादफा कर देता है। थाने में बच्चों के लापता होने की रपट लिखाने आये माता-पिता को बहला फुसलाकर लौटा देता है।
पुलिस की काहिली और मालिक के रुबते से प्रेम का हौसला बढ़ता जाता है। दशहरे के दौरान जब राम चरण पांडेय की बेटी ही किडनैप होने वाली होती है, जब उसका जमीर जागता है और वो एक युवती के लापता होने की रिपोर्ट दर्ज करके तफ्तीश शुरू करता है, मगर जांच के तार बस्सी तक पहुंचते हैं तो डीसीपी उसे सस्पेंड करवा देता है।
इस बीच एक अमीर बिजनेसमैन का बेटा किडनैप हो जाता है, जिसे पुलिस दो दिन में ढूंढ निकालती है। कहानी आगे बढ़ती है। नये एसएसपी के आने और बहाली के बाद पांडेय युवती की गुमशुदगी की जांच आगे बढ़ाता है और प्रेम को पूछताछ के लिए बुलाता है, जिसमें युवती की हत्या से लेकर बच्चों की गुमशुदगी और हत्या की रूह कंपाने वाली गुत्थियां खुलती हैं।
कैसा है फिल्म का स्क्रीनप्ले?
सेक्टर 36 की कहानी को मेकर्स ने सच्ची घटना से प्रेरित कहा है। यह सच्ची घटना कौन-सी है, फिल्म के शुरुआती दृश्य देखकर ही समझ में आ जाता है। निठारी कांड पर आधारित या प्रेरित होने के बावजूद लेखक ने फिल्म से ‘निठारी’ को दूर ही रखा है। यहां तक कि नोएडा का नाम भी कहीं नहीं आता। कथाभूमि शाहदरा और काल्पनिक बस्ती राजीव कैम्प पर ही केंद्रित रहती है।
फिल्म को हार्ड हिटिंग क्राइम थ्रिलर बनाने के लिए कत्ल और खून-खराबे के दृश्यों को दिखाने में कोई संकोच नहीं किया गया है। कुछ वीभत्स दृश्यों को देखते हुए विरक्ति होती है। प्रेम के किरदार की मानसिक विकृति को स्थापित करने के लिए उसका अतीत दिखाया गया है। हालांकि, जब बात मर्डर और पुलिस एक्शन की आती है तो स्क्रीनप्ले में कई झोल हैं, जो सवाल खड़े करते हैं।
चम्बा का रहने वाला प्रेम पूछताछ के दौरान बताता है कि मीट का कारोबार करने वाला मामा बचपन में उसका यौन शोषण करने की कोशिश करता है, जिसे वो बेहरमी से मार डालता है और उसका मांस भी खाता है। वहीं, से उसे इंसानी मीट खाने की लत लगती है और दो-तीन महीनों में एक बार उसे इंसान मांस खाना पड़ता है।
हालांकि, बचपन में इतने बड़े हत्याकांड को अंजाम देने के बाद प्रेम कैसे बच निकलता है? पुलिस एक्शन क्यों नहीं होता? अपने अतीत को छिपाकर बस्सी के यहां वो कैसे पहुंचता है? ऐसे सवालों के जवाब नहीं मिलते। दीपक डोबरियाल के किरदार इंस्पेक्टर राम चरण पांडेय को राम लीला का शौकीन दिखाया गया है। राम चरण, राम लीला में रावण बनता है।
न्यूटन के के गति के तीसरे लॉ- Every Action, There Is An Equal And Opposite Reaction को अपनी जिंदगी का मूलमंत्र मानने वाला राम चरण इंसानी अंग मिलने के बाद भी इतना उदासीन और भावशून्य बना रहता है कि बच्चों के गायब होने की शिकायत लेकर जब माता-पिता पहुंचते हैं तो कहता है, भाग गये होंगे। दुनियाभर का ज्ञान देने वाला राम चरण अपने कर्म को लेकर इतना उदासीन कैसे है, यह कहीं से जस्टिफाई करने की कोशिश नहीं की गई है।
लगभग दो दर्जन बच्चों के लापता और मर्डर का खुलासा होने के बाद भी सारी कार्रवाई बस चंद पुलिस वालों तक ही सिमटी रही है। स्क्रीनप्ले में ऐसा कोई दृश्य नहीं है, जिससे इस खुलासे की गंभीरता का व्यापक असर समझा जा सके।
अमीर का बच्चा किडनैप होने पर पुलिस महकमे की तत्परता और कमजोर गरीबों को दुत्कारने की निर्लज्जता, सदियों से चली आ रही सामंतवादी सोच को दिखाती है, जो इस हत्या कांड के फलने-फूलने की बड़ी वजह रही। इसे उभारने में लेखन टीम कामयाब रही है।
फिल्म के क्लाइमैक्स में लेखन टीम ने कल्पना को उड़ान का इस्तेमाल किया है और एक अलग तरह का अंत दिया है, जो शॉकिंग है।
कैसा है कलाकारों का अभिनय?
शुरुआती दृश्यों में विक्रांत मैसी साइको किलर प्रेम के किरदार में बिल्कुल अनफिट लगते हैं। विक्रांत के चेहरे पर साइको किलर के भावों की कमी खलती है। लगता है कि ‘नॉट अ लव स्टोरी’ में कातिल बने दीपक डोबरियाल को यह किरदार मिलना चाहिए था। मगर, पुलिस स्टेशन में पूछताछ के दृश्यों से पासा पलटता है और खून जमाने वाले घटनाक्रम बताते समय विक्रांत उस साइको किलर को बाहर लाने में सफल रहते हैं, जिसका इंतजार था। यह दृश्य सेक्टर 36 की जान है।
खुद एक बेटी का पिता और आर्थिक रूप से कमजोर तबके से आने वाला प्रेम जिस तरह बच्चों के कत्ल और घिनौने कृत्यों को जस्टिफाई करता है, वो उसकी मानसिक अवस्था को जाहिर करता है। उसे इस बात का एहसास ही नहीं है कि उसने कितना गंभीर अपराध किया है। वो मानता है कि गरीब बच्चों को मारकर वो उन्हें ऐसी जिंदगी से मुक्ति दे रहा है, जो आगे चलकर उनके लिए बोझ बन जाएगी। विक्रांत का अभिनय इस सोच को दहलाने वाले दृश्य में बदल देते हैं।
पुलिस इंस्पेक्टर राम चरण पांडेय के किरदार में दीपक डोबरियाल बेबस ज्यादा नजर आते हैं। हालांकि, किरदार के खांचे में उन्होंने अच्छा काम किया है। अन्य सहयोगी किदारों ने अपनी भूमिकाओं के साथ न्याय किया है। डेब्यू फिल्म के लिहाज से आदित्य निलम्बलकर ने कलाकारों से ठीक काम निकलवा लिया है।