Jewel Thief Review: जिसे समझे थे हीरा, वो निकला कांच का टुकड़ा! जमे नहीं सैफ, किरदार में मिसफिट जयदीप

Jewel Thief releases on Netflix. Photo- Instagram
  • फिल्म: ज्वेल थीफ- द हाइस्ट बिगिंस (Jewel Thief The Heist Begins)
  • कलाकार: सैफ अली खान, जयदीप अहलावत, निकिता दत्ता, कुलभूषण खरबंदा आदि।
  • निर्देशक: कूकी गुलाटी और रॉबी ग्रेवाल
  • लेखक: डेविड लोगन, सुमित अरोड़ा
  • निर्माता: सिद्धार्थ आनंद (मारफ्लिक्स)
  • प्लेटफॉर्म: नेटफ्लिक्स
  • अवधि: एक घंटा 58 मिनट
  • वर्डिक्ट: ** (दो स्टार)

मनोज वशिष्ठ, मुंबई। Jewel Thief Review: जनवरी में सैफ अली खान के घर पर चोरी की एक कोशिश हुई थी, जिसे खुद एक्टर ने विफल कर दिया था। फिल्मी अंदाज में चोर का सामना करते हुए सैफ काफी जख्मी भी हुए थे।

घायल अवस्था में घर से अस्पताल तक अपने पैरों पर चलकर जाने की उनकी असली कहानी में हीरोइज्म के साथ-साथ रोमांच भी भरा था। सैफ करीब पांच दिन अस्पताल में सर्जरी और इलाज के लिए भर्ती रहे थे।

फिल्म इंडस्ट्री के साथ देश को सकते में डालने वाली इस घटना के लगभग तीन महीने बाद सैफ पाला बदलकर ओटीटी के पर्दे पर लौटे हैं। रियल लाइफ के छोटे नवाब ज्वेल थीफ बनकर 500 करोड़ कीमत के हीरे को चुराने की फिराक में है।

मगर, यकीन मानिए, पर्दे पर चोर बनकर सैफ उतना रोमांच पैदा नहीं कर सके, जितना उन्होंने रियल लाइफ में हीरो बनकर महसूस करवाया था।

ज्वेल थीफ हर लिहाज से एक घटिया फिल्म है। कहानी से लेकर अभिनय, निर्देशन और तकनीक, हर विभाग में ज्वेल थीफ की चमक फीकी रह गई है। वो तो गनीमत है कि लगभग दो घंटे की यह फिल्म ओटीटी प्लेटफॉर्म पर आई है, इसलिए बर्दाश्त किया जा सकता है।

क्या है Jewel Thief की कहानी?

एक नेकदिल और समाजसेवी डॉक्टर जयंत रॉय (कुलभूषण खरबंदा) का बेटा रेहान रॉय (सैफ अली खान) इसलिए चोर बन जाता है, क्योंकि बचपन में उसने अपनी मां को पैसों के अभाव में इलाज ना हो पाने के कारण खो दिया था। 10 रुपये की फीस लेकर इलाज करने वाले पिता के पास इतना पैसा नहीं था कि अपनी पत्नी का इलाज भी करवा सके।

एक डॉक्टर का बेटा चोर कैसे बन सकता है? पिता ने इसीलिए बेटे को घर से निकालकर संबंध खत्म कर लिये। मगर, विदेशों में हाइ प्रोफाइल चोरियां करके अपनी दुनिया में नाम कमा रहे बेटे को उस वक्त लौटना पड़ता है, जब उसका पिता बड़ी मुसीबत में फंस जाता है।

इस मुसीबत से बचने का उपाय है- अफ्रीकी रियासत का सबसे बड़ा हीरा रेड सन, जिसकी कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में 500 करोड़ है। रेहान के पिता को मुसीबत में डालने वाला है आर्ट लवर के भेष में छिपा डॉन राजन औलख (जयदीप अहलावत), जो रेहान पर दबाव बनाने के लिए यह तरकीब लगाता है।

यह भी पढ़ें: Logout Review: 49 मिलियन फॉलोअर्स पर अटके अमिताभ बच्चन को देखनी चाहिए बाबिल की फिल्म ‘लॉगआउट’

कैसी है फिल्म की कहानी और स्क्रीनप्ले?

इस कहानी पर स्क्रीनप्ले डेविड लोगन ने लिखा है। संवाद सुमित अरोड़ा ने लिखे हैं। कहानी तो फिर भी बर्दाश्त करने लायक है, मगर इसे जिस तरह से स्क्रीनप्ले में ढाला गया है, वो उसमें इतने झोल हैं कि इस प्रोजेक्ट को हरी झंडी देने वालों की सिनेमाई समझ पर संदेह होने लगता है। याद रहे, पठान और वार बनाने वाले सिद्धार्थ आनंद की यह पहली होम प्रोडक्शन फिल्म है।

पूरा स्क्रीनप्ले क्लीशेज से भरपूर है। राजन औलख के इंट्रो सीन से लेकर, रेहान की एंट्री, विदेश में रेहान का पीछा करते इंडियन इंटेलीजेंस के लोग, रेहान और पुलिस अफसर विक्रम पटेल के बीच चोर-पुलिस वाला खेल, लेजर लाइट्स की सुरक्षा में रेड सन हीरा। सब कुछ कई बार देखा जा चुका है।

अगर दो पुलिस वाले दिखाने हैं तो उनमें से एक मोटा ही क्यों दिखाना है, जो चिप्स खाता रहता है। कुछ नया सोचो भाई। उसको मोटा दिखाने से ना तो कहानी समृद्ध होती है और ना ही लाइनों में कोई पंच आता है।

फिल्म का स्क्रीनप्ले अब्बास-मस्तान टाइप का है। ए नहीं बी, बी नहीं सी, सी नहीं डी…। मतलब, विलेन चाहे जो चाल चल ले, आखिर में पता चलता है कि चालें तो हीरो चल रहा था, विलेन तो बस उसे फॉलो कर रहा था।

फिल्म के हीरो की सुविधा के हिसाब से स्क्रीनप्ले कहानी को इधर-उधर घुमाता रहता है। हवाई जहाज की सीक्वेंस दिलचस्प बनाई जा सकती थी, मगर खराब स्क्रीनप्ले ने इसकी मिट्टी पलीत कर दी।

ज्वेल थीफ (Jewel Thief Review) तकनीकी स्तर पर भी एक कमजोर फिल्म है। एआई की मदद से कलाकारों और फ्रेम को इतना चमका दिया कि नकली लगने लगता है। कहीं-कहीं खराब लाइटिंग ने कुछ दृश्यों का रंग संयोजन बिगाड़ दिया है।

जिस परिवार के रेहान इतना बड़ा जोखिम उठाकर बुडापेस्ट से मुंबई चोरी के लिए आता है, उसके साथ दृश्यों में वो भावनात्मक गहराई नजर नहीं आती।

हाइस्ट फिल्मों में एक्शन महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है, मगर ज्वेल थीफ में एक भी ऐसा दृश्य नहीं है, जिसे देखते हुए मुंह खुला रह जाए। सांस अटक जाए। सैफ और जयदीप पर फिल्माये गये एक्शन में कोई ऊर्जा नजर नहीं आती।

हवाई सीक्वेंस को पूरी तरह जाया कर दिया गया है। यहां एक्शन और रोमांचक दृश्य दिखाने का बहुत स्कोप था, मगर इसे कैश नहीं कर सके। निश्चित रूप से ये सब निर्देशन की खामियां हैं।

Photo- Netflix

कमजोर रहे किरदार और अभिनय

सैफ अली खान ने इस किरदार के लिए अभिनय में बिल्कुल मेहनत नहीं की है। जयदीप अहलावत तो पूरी तरह मिसफिट लगते हैं। उन्हें देखकर एक इलीट क्लास सफेदपोश डॉन का एहसास नहीं जागता। शुरुआत में विलेन के लिए जो माहौल बनाया जाता है, क्लाइमैक्स में वो ऐसे ढेर हो जाता है, जैसे कुछ हो ही ना। कुणाल कपूर सिर्फ फिन इन द ब्लैंक हैं।

राजन की बीवी और बाद में रेहान की प्रेमिका फराह के किरदार में निकिता दत्ता खूबसूरत लगी हैं, मगर उनका योगदान ज्यादा नहीं है। ज्वेल थीफ द हाइस्ट बिगिंस की सबसे कमजोर कड़ी इसके जूनियर कलाकार हैं, जो दृश्यों को पूरी तरह अदर्शनीय बनाते हैं। संगीत की बात ही मत कीजिए, एक भी गाना याद रखने लायक नहीं। ऐसा लगता है कि जिंगल्स बज रहे हैं।

Photo- Netflix

सैफ अली खान, साउथ फिल्म इंडस्ट्री की सैर करके लगभग तीन साल बाद बॉलीवुड में लौटे हैं, मगर ऐसा ही चलता रहा तो जल्द उन्हें साउथ वापस जाना पड़ेगा।

ज्वेल थीफ कुल मिलाकर एक गंवाया हुआ मौका है, जिसे बेहतरीन फिल्म में बदला जा सकता था। दुख यहीं खत्म नहीं होता, फिल्म पूरी होने के बाद स्क्रीन पर लिखा आता है- द हाइस्ट कंटीन्यूज… बचकर रहिएगा।