एक थी डायन को देखकर जब थिएटर से बाहर निकला, तो फ़िल्म की छिपकली की तरह ये सवाल मेरे सिर पर सवार हो गया, कि सेंसर बोर्ड ने इस फ़िल्म को यू/ए सर्टिफिकेट कैसे दे दिया ? विशाल भारद्वाज और एकता कपूर की ये फ़िल्म बच्चों के लिए बिल्कुल नहीं है, भले ही वो अपने माता-पिता की देख-रेख में क्यों ना देख रहे हों । एक थी डायन सौ फ़ीसदी हॉरर फ़िल्म है, जिसमें डायनों और पिशाचों के बारे में समाज में प्रचलित अंधविश्वासों को कहानी का आधार बनाया गया है । हालांकि फ़िल्म शुरू होने से पहले कोंकना सेन शर्मा की आवाज़ में डिस्क्लेमर भी आता है, कि ये फ़िल्म अंधविश्वासों को बढ़ावा नहीं देती है, और ना ही औरतों के बारे में कोई ग़लत धारणा बनाती है ।
एक थी डायन कहानी है बोबो जादूगर ( इमरान हाशमी ) की, जिसका सामना बचपन में एक डायन ( कोंकना सेन शर्मा ) से होता है । बोबो के पिता और बहन को ये डायन मार देती है । बचपन से ही जादुई शक्तियों में रुचि रखने वाला बोबो उस वक़्त तो डायन को मार देता है, लेकिन वो उसे वापस आने की चेतावनी देकर जाती है । इस घटना की यादें बोबो को बार-बार सताती हैं, और उसे विश्वास होने लगता है, कि डायन वापस ज़रूर आएगी । अपने इसी विश्वास के चलते वो डिस्टर्ब रहने लगता है । बोबो का ये विश्वास ग़लत भी नहीं होता । डायन उसकी ज़िंदगी में वापस आ चुकी होती है, लेकिन बोबो उसे पहचान नहीं पाता । और ये रहस्य खुलता है फ़िल्म के क्लाइमेक्स में ।
डायन के रोल में कोंकना सेन शर्मा ने अच्छा काम किया है, जैसी कि उनसे उम्मीद रहती है । उनके हाव-भाव डायन की दहशत पैदा करने के लिए काफी हैं । हुमा कुरेशी इमरान की गर्ल फ्रेंड ( तमारा ) और बीवी के रोल में हैं । कोंकना के बाद उनका क़िरदार पॉवरफुल है । इमरान के साथ हुमा के कुछ रोमांटिक सींस भी हैं, लेकिन भविष्य में ऐसे सींस को और रूमानी बनाने के लिए हुमा को अपना वज़न कम करना होगा । वहीं, कल्कि कोचलिन ( लीज़ा दत्त ) की इंट्री इंटरवल के बाद होती है, और उनका इस्तेमाल सिर्फ़ सस्पेंस बढ़ाने के लिए किया गया है । लिहाज़ा कल्कि के हिस्से में चंद सींस ही आए हैं । फ़िल्म में इमरान का अभिनय साधारण है । उसमें कुछ नयापन नहीं है । फ़िल्म का सबसे अहम और असरदार हिस्सा बोबो का बचपन है, जब उसका सामना पहली बार डायन से होता है । ये रोल निभाया है विशेष तिवारी ने । इन सींस में हॉरर भी है, और ह्यूमर भी ।
निर्देशक कन्नन अय्यर एक थी डायन को हॉरर देने में क़ामयाब हुए हैं । कैमरा एंगल्स, विजुअल इफेक्ट्स और साउंड इफेक्ट्स ने हॉरर को बढ़ाने में मदद की है, जिसे फ़िल्म के बैकग्राउंड म्यूज़िक ने कॉम्पलीमेंट किया है । लेकिन कहानी के मामले में विशाल भारद्वाज और मुकुल शर्मा मात खा गए हैं । बेहद दकियानूसी और गांव-देहात में प्रचलित क़िस्सों को फ़िल्म की कहानी बनाया गया है । एक थी डायन की कहानी मुंबई में सेट की गई है, लेकिन ये कहानी मुंबई जैसे महानगरों में रहने वाले लोगों को शायद पसंद ना आए । कुल मिलाकर एक था डायन औसत दर्ज़े की हॉरर फ़िल्म है, जिससे बहुत उम्मीदें करना बेकार है । ये फ़िल्म विशाल की ओमकारा और एकता की द डर्टी पिक्चर वाली केटेगरी में भी नहीं रखी जा सकती ।
रेटिंग – **1/2