हीरोपंती देखने के बाद टाइगर श्रॉफ़ के नाम एक खुला ख़त!

प्रिय टाइगर,

heropanti-4dउम्मीद है, कि तुम स्वस्थ और मस्त होओगे। आज तो व्यस्त भी होओगे। तुम्हारी पहली फ़िल्म हीरोपंती आख़िरकार रिलीज़ हो गई। इस दिन का सपना तुम ना जाने कब से देख रहे होओगे। तुम्हारे साथ-साथ तुम्हारे पापा जैकी और मॉम आएशा ने भी इस दिन की उम्मीद में ना जाने कितनी रातें जागकर काटी होंगी, कि एक दिन तुम्हें बड़े पर्दे पर हीरोपंती करते हुए देखेंगे। उनके आशीर्वाद के साथ तुम्हारी हीरोपंती शुरू हो गई है।

ज़ाहिर सी बात है, पापा-मम्मी को तु्म्हारी हीरोपंती देखकर बहुत मज़ा आ रहा होगा। वो तो खुशी के मारे फूले ना समा रहे होंगे। आख़िर अपना बेटा अपना होता है। वो कुछ भी करे, मां-बाप ताली बजाकर उसका हौसला ह बढ़ाते हैं। बचपन में कितनी बार तुम राइम सुनाते-सुनाते अटके होओगे, लेकिन मॉम आएशा ने तालियां बजाकर तुम्हारी हौसलाअफ़जाई की होगी। इसलिए तुम्हारी पहली फ़िल्म के लिए उनकी राय मेरे लिए कोई मायने नहीं रखती।

फ़िल्म इंडस्ट्री ने तुम्हें बढ़ते हुए देखा है। तुम्हें घुटनों से चलकर अपने पैरों पर खड़े होते हुए देखा है। इसलिए वो भी तुम्हारी पहली फ़िल्म को देखकर तालियां पीट रहे हैं। मुझे उससे भी कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। लेकिन मुझे फ़र्क़ पड़ता है उन लोगों से, जो तुम्हारी पहली फ़िल्म को देखकर तालियों की जगह अपना माथा पीट रहे थे। ये बात सही है, कि अपनी पहली फ़िल्म में कोई एक्सपर्ट नहीं होता। थोड़ी-बहुत कमियां रह जाती हैं, लेकिन तुम्हें फ़िल्म में देखकर ऐसा लगा, जैसे कमियां ही कमियां हैं, और उन कमियों को ढकने की कोशिश की गई है।

तुम फाइट बहुत अच्छी करते हो, लेकिन डायलॉग बोलना तुम्हारे बस की बात नहीं। मारते वक़्त तुम हाथ-पैर चलाते हो, लेकिन बोलते वक़्त चेहरे पर एक्सप्रेशन सेम रहते हैं। तुम कब बहुत गुस्सा होते हो, कब बहुत कम, पता ही नहीं चलता। तुम्हारी फ़िल्म के प्रोमोज़ से लेकर पर्दे तक एक ही बात अच्छी है, कि तुम फाइट अच्छी कर लेते हो। पर तुम्हें फइट मास्टर तो बनना नहीं है, हीरो बनना है। तो उसके लिए अपने पापा से टिप्स ले सकते थे।

तुम्हारी हीरोपंती देखते हुए मैंने बहुत कोशिश की, कि तुम्हारे पापा के बारे में ना सोचूं, पर क्या करूं। बार-बार ध्यान उधर ही जा रहा था। अस्सी के दशक में, जब तुम्हारे पापा की पहली फ़िल्म हीरो रिलीज़ हुई थी। क्या फ़िल्म थी। आज भी उसके सींस, धुनें, तु्म्हारे पापा की भारी आवाज़, अपने प्यार को पाने के लिए लड़ता एंग्री यंग मैन आज भी यादों में ज़िंदा है। पर तुम्हारी फ़िल्म का एक भी सीन में अपने साथ लेकर नहीं लौटा, जबकि तुम्हारी फ़िल्म को देखे हुए अभी महज़ दो घंटे हुए हैं।

कुछ साथ आया है, तो वो हैं कृति सोनान, जिनके कुछ सींस और रॉ ब्यूटी ने फ़िल्म को अंत तक देखने के लिए प्रेरित किया। तम्हारी सबसे बड़ी ग़ल्ती है तुम्हारी फ़िल्म का डायरेक्टर साबिर ख़ान। तुम्हें अपना डेब्यू कभी साबिर के साथ नहीं करना था। वो भी तब, जबकि तुमने उसकी लास्ट फ़िल्म कम्बख़्त इश्क़ देखी होगी। इतनी कम्बख़्त फ़िल्म देखने के बाद भी तुम साबिर के डायरेक्शन में काम करने को तैयार हो गए, इस पर मुझे हैरानी है।

तुम्हारे लिए मेरी राय है, कि जो हो गया, सो हो गया। अपनी अगली फ़िल्म साबिर के साथ मत करो। कांट्रेक्ट तोड़ दो, और किसी यंग और समझदार डायरेक्टर के साथ काम करो, फाइट मास्टर के साथ नहीं। अगर फाइट का ही शौक़ है, तो रोहित शेट्टी के साथ फ़िल्म कर लो, पर प्लीज़ साबिर ख़ान के साथ दूसरी फ़िल्म मत करना। उम्मीद है, तुम मेरी बात समझ रहे होगे। बाक़ी फ़िक्र मत करो, थोड़े वक़्त बाद तुम एक्टिंग करने लगोगे। चेहरे पर थोड़ी मर्दानगी लेकर आओ, और डायलॉग डिलीवरी पर मेहनत करो, सब ठीक हो जाएगा। फिर लोग नहीं कहेंगे, कि सबकी जाती नहीं, इसको आती नहीं।

तुम्हारी अगली फ़िल्म के इंतज़ार में,

तुम्हारा,

शुभचिंतक।