मुंबई। Manoj Kumar Death: सिनेमा को समाज का आइना कहा जाता है। समाज में हो रही घटनाएं सिनेमा की प्रेरणा और तस्वीर बनती हैं। इस बात को अगर किसी फिल्मकार ने पूरी शिद्दत और जिम्मेदारी के साथ स्वीकार किया तो वो थे मनोज कुमार।
अपनी फिल्मों के जरिए समाज की बदलती हवा को महसूस करने वाले मनोज के सिनेमा में भारत की सच्ची तस्वीर नजर आती रही। अगर शुरुआती कुछ फिल्मों को छोड़ दें तो लगभग चार दशक के करियर में उनका सिनेमा समाज और देश की तत्कालीन परिस्थितियों पर केंद्रित रहा।
‘जय जवान जय किसान’ के नारे से प्रेरित होकर वो ‘उपकार’ बनाते हैं तो देश के युवाओं पर पश्चिमी संस्कृति के हावी होने की कसक ‘पूरब और पश्चिम’ में झलकती है। सत्तर-अस्सी के दौर में देश में बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी जैसे मुद्दे ‘रोटी कपड़ा और मकान’ के जरिए पर्दे पर आते हैं। यह कहना गलत नहीं होगा कि वो ग्लैमर से भरी इंडस्ट्री में भारत के ‘मिडिल क्लास’ की नुमाइंदगी कर रहे थे।
शुक्रवार सुबह हुआ निधन
अपने इस मिडिल क्लास बेटे के जाने का गम पूरा देश मना रहा है। 4 अप्रैल को सुबह उनका 87 साल की उम्र में निधन हो गया। उम्र संबंधी बीमारियों के लिए वो मुंबई के कोकिलाबेन धीरूभाई अम्बानी अस्पताल में भर्ती थे, जहां दिग्गज अभिनेता ने अंतिम सांस ली।
अपनी सामाजिक और देशभक्ति से ओतप्रोत फिल्में बनाने के कारण भारत कुमार के नाम से मशहूर मनोज कुमार के निधन से फिल्म इंडस्ट्री में शोक की लहर छा गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिवंगत अभिनेता के निधन पर दु:ख व्यक्त करते हुए श्रद्धांजलि अर्पित की है।

मनोज कुमार के बेटे कुणाल गोस्वामी ने मीडिया को बताया कि गुरुवार रात करीब 3.30 बजे उनका निधन (Manoj Kumar Death) हो गया। पिछले दो-तीन हफ्तों से उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं चल रहा था और उम्र की वजह से काफी दिक्कतें होने लगी थीं। मगर, बड़ी शांत और आराम से उनका स्वर्गवास हुआ।
मनोज कुमार के सिनेमा पर कुणाल ने कहा कि उन्होंने तो मुद्दे कपड़े थे, वो आज भी प्रासंगिक हैं। उपकार, पूरब पश्चिम और रोटी कपड़ा और मकान के मुद्दे आज भी रेलिवेंट हैं, चाहे वो समाज में हो या पार्लियामेंट में हो, यह बातें आज भी चलती हैं। उनके मुद्दे वास्तविक जीवन में सबके साथ जुड़े थे।
अभिनेता का अंतिम संस्कार शनिवार को किया जाएगा।
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#WATCH | Veteran actor Manoj Kumar passed away at the Kokilaben Dhirubhai Ambani Hospital early this morning at around AM.
— ANI (@ANI) April 4, 2025
His son, Kunal Goswami, says, "…He has had health-related issues for a long time. It's the grace of the god that he bid adieu to this world peacefully.… pic.twitter.com/ElDsttocMM
10 साल की उम्र में देखा विभाजन
उनका जन्म 24 जुलाई 1937 को ब्रिटिश भारत के अबोटाबाद (अब पाकिस्तान) में हुआ था। मनोज ने सिनेमा के हर विभाग में अपना हुनर दिखाया। अभिनय के अलावा उन्होंने पटकथा लेखन, गीतकार, निर्देशन, निर्माण समेत तमाम विभागों में अपना कौशल दिखाया।
मनोज कुमार उन कलाकारों में शामिल हैं, जिन्होंने भारत विभाजन का दंश झेला है और पाकिस्तान बनने के बाद पलायन के लिए मजबूर हुए। पंजाबी हिंदू ब्राह्मण परिवार में जन्मे मनोज उस वक्त सिर्फ 10 साल के थे, जब उनके परिवार को जंडियाला शेर खान से दिल्ली की ओर पलायन करने के लिए मजबूर होना पड़ा।
एक शरणार्थी शिविर में बड़े होने के दौरान कुमार का आम आदमी के संघर्षों से गहरा जुड़ाव रहा, जो कहीं ना कहीं उनकी फिल्मों की कहानियों में अंतर्निहित रहा। दिलीप कुमार और राज कपूर जैसे सिनेमाई दिग्गजों से प्रेरित होकर वह 1956 में मुंबई पहुंचे और अभिनेता बनने के सपने देखे।
दिलीप कुमार की प्रेरणा से बने मनोज कुमार
मनोज कुमार का असली नाम हरिकृष्ण गिरि गोस्वामी था। फिल्मों में करियर बनाने के लिए नाम बदलने के चलन का पालन करते हुए वो मनोज कुमार बन गये। दिलीप कुमार उनकी प्रेरणा थे। दिलीप साहब की फिल्म शबनम में नायक का नाम मनोज कुमार था, जिसे अपनाकर हरिकृष्ण गोस्वामी मनोज कुमार बन गये।

मनोज ने 1957 में आई फिल्म फैशन से फिल्मी पारी शुरू की थी। चार सालों तक संघर्ष और छोटी-मोटी भूमिकाओं के बाद 1961 में बतौर लीड एक्टर उनकी पहली पिल्म कांच की गुड़िया रिलीज हुई, हालांकि फिल्म नहीं चली।
मनोज कुमार के करियर की पहली सफल फिल्म 1962 में आई हरियाली और रास्ता है, जिसमें माला सिन्हा उनकी हीरोइन थीं। यह फिल्म जबरदस्त रूप से सफल रही और मनोज कुमार को रोमांटिक सितारे के तौर पर स्थापित किया।
साठ का दशक मनोज के नाम
1960 का दशक मनोज कुमार के स्टारडम की ओर बढ़ने का समय था। वह कौन थी? (1964), साधना के साथ एक साइकोलॉजिकल थ्रिलर फिल्म और गुमनाम (1965), एक सस्पेंस थ्रिलर, ने उन्हें भरोसेमंद कलाकार के तौर पर स्थापित किया।
अमर शहीद सरदार भगत सिंह के किरदार में शहीद (1965) ने मनोज कुमार के उस सिनेमाई सफर की शुरुआत की, जो आगे चलकर उन्हें भारत कुमार बनाने वाला था। तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने शहीद की तारीफ की और राष्ट्रीय एकता के थीम पर काम करने का आग्रह किया।
देशभक्ति सिनेमा और ‘भारत कुमार’ का जन्म
1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद शास्त्री के नारे “जय जवान जय किसान” से प्रेरित होकर कुमार ने उपकार बनाई, जिसने देश में फौजी और किसानों की अहम भूमिकाओं को रेखांकित किया। इस फिल्म से मनोज कुमार ने निर्देशकीय पारी भी शुरू की थी। कल्याणजी-आनंदजी ने फिल्म का संगीत रचा, जो कालजयी रहा।
महेंद्र कपूर की आवाज में “मेरे देश की धरती” एक तरह से पूरे देश का गौरव-गीत बन गया था। आज भी यह गाना हर साल गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस के मौकौं पर सार्वजनिक उत्सवों में बजाया जाता है। उपकार एक ब्लॉकबस्टर थी, 1967 में बॉक्स ऑफिस पर शीर्ष पर रही और कुमार को उनका पहला फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ निर्देशक पुरस्कार दिलाया।
कुमार का देशभक्ति पर आधारित फिल्मों का क्रम पूरब और पश्चिम (1970) के साथ जारी रहा। भारत नाम का किरदार निभाते हुए उन्होंने सांस्कृतिक पहचान और राष्ट्रीय गर्व पर जोर दिया, जो भारत और विदेशों में दर्शकों के साथ गूंजा।
यह फिल्म लंदन में 50 से अधिक हफ्तों तक चली, जिसने उनकी अंतरराष्ट्रीय अपील को मजबूत किया। 1981 में आई मनोज कुमार की फिल्म क्रांति में दिलीप कुमार, हेमा मालिनी, शत्रुघ्न सिन्हा और शशि कपूर जैसे शानदार कलाकारों ने प्रमुख किरदार निभाये थे।
क्रांति उस साल की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म बनी और बॉलीवुड की सबसे बड़ी देशभक्ति हिट फिल्मों में से एक बनी रही।
सिनेमा में सामाजिक सरोकार
देशभक्ति के अलावा मनोज कुमार (Manoj Kumar Death) ने अपनी फिल्मों के माध्यम से सामाजिक मुद्दों को उठाया। रोटी कपड़ा और मकान (1974), इंदिरा गांधी के नारे से प्रेरित, भोजन, कपड़े और सिर पर छत की मूलभूत जरूरतों पर केंद्रित थी।
कुमार के साथ अमिताभ बच्चन और जीनत अमान अभिनीत इस फिल्म ने स्टार पावर को आर्थिक असमानता के मार्मिक संदेश के साथ पेश किया, जिसने उन्हें सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का एक और फिल्मफेयर पुरस्कार दिलाया।
इसी तरह शोर (1972) ने मजदूर वर्ग के संघर्षों को रेखांकित किया, जबकि संन्यासी (1975) ने आध्यात्मिकता और नैतिकता पर जोर दिया गया। इस कड़ी की आखिरी फिल्म 1989 में आई क्लर्क है, जिसमें मनोज एक बार फिर भारत बनकर पर्दे पर उतरे। भ्रष्टाचार के मुद्दे पर बनी फिल्म में शशि कपूर, रेखा, अनीता राज, राजेंद्र कुमार और अशोक कुमार प्रमुख किरदारों में थे।
पुरस्कार और सम्मान
मनोज कुमार (Manoj Kumar Death) के योगदान को व्यापक रूप से सराहा गया। उन्हें उपकार के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार और सात फिल्मफेयर पुरस्कार मिले, जिसमें उपकार और रोटी कपड़ा और मकान के लिए सर्वश्रेष्ठ निर्देशक और 1999 में लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड शामिल हैं।
भारत सरकार ने उन्हें 1992 में पद्म श्री और 2015 में भारतीय सिनेमा के सर्वोच्च सम्मान दादासाहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया।
सिनेमा से सियासत
क्रांति के बाद कुमार के करियर में गिरावट आई। कल्युग और रामायण (1987) और क्लर्क (1989) जैसी फिल्में उनकी पहले की सफलता को दोहराने में असफल रहीं। बतौर निर्देशक उनकी आखिरी फिल्म जय हिंद (1999) है, जिसमें उनके बेटे कुणाल गोस्वामी ने मुख्य भूमिका निभाई थी।

यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर विफल रही। हालांकि, अभिनय करते रहे। बतौर अभिनेता उनकी आखिरी फिल्म मैदान-ए-जंग है, जो 1995 में आई थी। इस फिल्म में धर्मेंद्र ने लीड रोल निभाया था। 2004 में मनोज कुमार (Manoj Kumar Death) ने भारतीय जनता पार्टी में शामिल होकर राजनीति में कदम रखा।