मुंबई: भारत की तरफ से ऑस्कर अवॉर्ड्स के लिए भेजी जाने वाली फ़िल्मों पर अक्सर सवाल उठते रहे हैं। आरोप लगाए जाते रहे हैं, कि भारत से जो फ़िल्में एकेडमी अवॉर्ड्स में नॉमिनेशन के लिए भेजी जाती हैं, उसमें राजनीति होती है।
ऑस्कर अवॉर्ड्स के लिए एंट्री का चयन करने वाली समिति पर ऐसे ही आरोपों की बौछार पिछले साल हुुई, जब समिति ने रितेश बत्रा की फ़िल्म ‘द लंच बॉक्स’ को एकेडमी अवॉर्ड्स की विदेशी भाषा केटेगरी में एंट्री के लिए नज़रअंदाज़ करते हुए गुजराती भाषा की फ़िल्म ‘द गुड रोड’ को आस्कर के लिए भेज दिया गया, जिसे एड फ़िल्ममेकर ज्ञान कोरिया ने डायरेक्ट किया था।
अब इस मुद्दे पर आवाज़ उठाई है प्रीतीश नंदी ने। माइक्रो ब्लॉगिंग साइट के ज़रिए नंदी ने ऑस्कर अवॉर्ड्स के लिए फ़िल्मों की चयन प्रक्रिया बदलने की बात कही है। प्रीतीश ने लिखा है- “हमें आस्कर के लिए भारतीय फ़िल्में चुनने की नई प्रक्रिया की ज़रूरत है। मौजूदा सिस्टम ख़राब हो चुका है।”
We need a new way to choose Indian films for the Oscars. The current system sucks.
प्रीतीश ने ‘द लंच बॉक्स’ को ऑस्कर के लिए परफेक्ट मानते हुए लिखा है- “द लंच बॉक्स को ऑस्कर में ना भेजना सिर्फ़ हमारी बेवकूफ़ी है। ये फ़िल्म निश्चित रूप से शॉर्टलिस्ट होती। बहुत ज़्यादा राजनीति होने लगी है।”
Pritish Nandy @PritishNandy 4m
Only we were stupid not to send The Lunchbox to the Oscars. Would have been a surefire entry in the shortlist. Simply too much politics.
साथ ही प्रीतीश ने फ़िल्म की कमर्शियल सक्सेस पर लिखा है, कि द’ लंच बॉक्स’ अब तक दुनियाभर में 100 करोड़ कमा चुकी है। कौन कहता है, कि छोटी फ़िल्में पैसा नहीं बनातीं?
प्रीतीश की बातों से इंकार नहीं किया जा सकता, लेकिन ये मुद्दा उठाने की टाइमिंग समझ से परे है।