मनोज वशिष्ठ, मुंबई। Logout Review: अगर आप सोशल मीडिया के कीड़े हैं तो इस हफ्ते अमिताभ बच्चन की एक पोस्ट पर आपकी नजरें जरूर ठिठकी होगी, जिसमें सदी के महानायक एक्स पर अपने फॉलोअर्स की संख्या बढ़ाने के लिए बेताब दिख रहे हैं।
बिग बी ने लिखा था- ”बड़ी कोशिश कर रहे हैं, लेकिन 49 मिलियन फॉलोअर्स का यह नम्बर बढ़ ही नहीं रहा। कोई उपाय हो तो बताइए।”
भारतीय सिनेमा और निजी जीवन में शोहरत, दौलत और दर्शकों के प्यार की बुलंदी पर बैठा 82 साल का फिल्मी सितारा सोशल मीडिया की दुनिया में फॉलोअर्स बढ़ाने के लिए इस कदर उतावला है तो सोचिए उस इन्फ्लुएंसर की मानसिक अवस्था क्या होती होगी, जिसकी शोहरत और रोजी-रोटी का जरिया ही सोशल मीडिया है।
मनोविकार में बदल रही इस व्यग्रता ने इंसान को वहां पहुंचा दिया है, जहां सोशल मीडिया और इसके फॉलोअर्स की छद्म दुनिया ही असली लगने लगती है और जो असली रिश्ते हैं, वो बेमानी हो जाते हैं।
सोशल मीडिया के लाइक्स जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि लगने लगते हैं। लाइक्स और फॉलोअर्स के ऐसे ही नशे के दुष्परिणामों से परिचित करवाती है अमित गोलानी निर्देशित फिल्म लॉगआउट, जो जी5 पर आ चुकी है।
अमिताभ बच्चन के पीकू को-एक्टर दिवंगत इरफान के बेटे बाबिल ने फिल्म में मुख्य भूमिका निभाई है। लॉगआउट समकालीन विषय पर बनी बेहद प्रासंगिक फिल्म है, जिसमें रोमांच और सस्पेंस के साथ सामाजिक संदेश और नसीहत भी है।
क्या है लॉगआउट की कहानी?
घर और परिवार से पूरी तरह कट चुका प्रत्यूष दुआ गुरुग्राम में रहने वाला कंटेंट क्रिएटर और सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर है, जिसका प्रैटमैन नाम से चैनल है। प्रत्यूष लैला-मजनू नाम के काल्पनिक किरदारों पर फनी वीडियो बनाता है। भुवन बाम की तरह वो इनमें दोनों किरदार खुद ही निभाता है।
इंस्टाग्राम जैसे सोशल मीडिया एकाउंट पर 9 मिलियन से अधिक फॉलोअर्स हैं। उसकी टक्कर पर एक अन्य फीमेल इंफ्लुएंसर है। प्रत्यूष अगर इस लड़की से पहले 10 मिलियन के पड़ाव तक नहीं पहुंचता तो एक बहुत बड़ी डील उसके साथ से निकल जाएगी।
इस बीच उसका मोबाइल खो जाता है और एक महिला फैन के हाथ लग जाता है। इसके बाद शुरू होता है, प्रत्यूष की इन्फ्लुएंसर लाइफ का सबसे डरावना चैप्टर, जिसने आभासी और वास्तविक दुनिया के फर्क को मिटाकर उसकी जान को भी संकट में डाल दिया।
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कैसी है फिल्म की कथा-पटकथा?
लॉगआउट (Logout Review) चरित्र और लेखन प्रधान फिल्म है, जिसमें लेखक विश्वपति सरकार और निर्देशक अमित गोलानी ने सीमित किरदारों के जरिए सस्पेंस और थ्रिल की दुनिया रची गई है।
एक घंटा 48 मिनट की फिल्म की शुरुआत एक कत्ल से होती है और जिस तरह इस कत्ल को दिखाया गया है, लॉगआउट की जमीन वहीं तैयार हो जाती है। दृश्य जैसे-जैसे आगे बढ़ते हैं, इन्फ्लुएंसर प्रत्यूष के जीवन के पन्ने खुलने लगते हैं।
प्रत्यूष की यह दुनिया वास्तविकता के बेहद करीब है। बिल्कुल जानी-पहचानी लगती है। अलसाई सुबह में बिस्तर पर लेटे-लेटे हाथ सबसे पहले मोबाइल फोन को ढूंढता है। सोशल मीडिया पर मिले लाइक्स और फॉलोअर्स की गिनती तय करती है कि आज दिन कैसे गुजरने वाला है।
सोशल मीडिया में फॉलोअर्स की जंग किसी भी हद तक जा सकती है। एक दृश्य में दिखाया गया है कि प्रत्यूष, अपनी फर्जी आइडी से कॉम्पिटीटर इन्फ्लुएंसर की एक पोस्ट पर जाकर भद्दा कमेंट करता है और फिर रियल आइडी से अपने ही फर्जी फैन को लताड़ता है, ताकि सिम्पैथी ले सके।
यह दुनिया धीरे-धीरे इंसान को कितना अकेला कर देती है, इसका अंदाजा भी नहीं होता। सामने बैठी बड़ी बहन से बात करता प्रत्यूष पलभर के लिए भी मोबाइल फोन से दूर होने पर बेचैन होने लगता है।
प्रत्यूष के जरिए जहां इन्फ्लुएंसर्स की दुनिया के प्रॉज एंड कॉन्स दिखाये गये हैं, वहीं आभा नाम की दीवानी फैन के जरिए सोशल मीडिया और फोन की लत के दुष्परिणामों को रेखांकित किया गया है।
आभासी दुनिया को ही असलियत मान बैठी आभा प्रत्यूष की अटेंशन पाने के लिए खून-खराबे के लिए भी तैयार हो जाती है।
लगभग पूरी फिल्म प्रत्यूष के स्टूडियो में ही गुजरी है। एक ही लोकेशन होने के बावजूद दृश्य इस तरह लिखे गये हैं कि रोमांच बना रहता है। खासकर, प्रत्यूष और आभा के बीच होन वाली बातचीत फिल्म में एक रवानगी लाती है।
आभा किस तरह प्रत्यूष के फोन के जरिए उसे अपने जाल में फंसाती है और उसके साथ शह-मात का खेल खेलती है, वो उम्दा लेखन की बानगी। एक तरह से यह डिजिटल अरेस्ट जैसी स्थिति दिखने लगती है।
इस सिचुएशन से बचने के लिए प्रत्यूष का मैनेजर जडी पुलिस में शिकायत करने को कहता है, मगर जब आभा उसके एकाउंट से एक नेगेटिव पोस्ट करती है तो फॉलोअर्स बढ़ने लगते हैं और इस विकट परिस्थिति में भी फॉलोअर्स बढ़ाने के लालच में वो पुलिस में शिकायत नहीं करता।
कैसे हैं फिल्म के संवाद?
फिल्म (Logout Review) के संवाद मौजूदा पीढ़ी और सोशल मीडिया को समझने वाले लोगों के अनुरूप हैं। फिल्म के क्लाइमैक्स में जब प्रत्यूष अपने फोलॉअर्स को संबोधित करते हुए कहता है- पहले आप मेरा कंटेंट कंज्यूम कर रहे थे, अब मुझे कंज्यूम कर रहे हो।
10 मिलियन का जो आंकड़ा, उसके करियर को बचाने के लिए जरूरी था, फिल्म का क्लाइमैक्स आते-आते वही 10 मिलियन उसकी जिंदगी खत्म कर सकता था।
प्रत्यूष अपने फॉलोअर्स से साफ बोल रहा है कि अगर मेरे फॉलोअर्स 10 मिलियन हो गये तो मैं मर जाऊंगा, मगर फॉलोर्स कमेंट में बेहद असंवेनशील जवाब लिखते हैं। वो कैमरे पर प्रत्यूष के मरने का दृश्य देखने के लिए बेताब हैं।
यहां एक कमेंट बॉलीवुड में चलने वाली नेपो किड की बहस की ओर इशार करता है, जिसमें यूजर प्रत्यूष को रोते हुए देखकर लिखता है कि बॉलीवुड के नेपो किड्स से अच्छी एक्टिंग कर रहा है।
कैसा है कलाकारों का अभिनय?
लॉगआउट पूरी तरह बाबिल के कंधों पर टिकी फिल्म है। यहां यह लिखना गलत नहीं होगा कि खुशी कपूर, अमन देवगन और इब्राहिम अली खान से शुरू होने वाली नेपो किड्स की सारी बहस बाबिल के अभिनय पर आते ही बेमानी हो जाती हैं।
25 साल का ऐसा इन्फ्लुएंसर, जो फोन के लिए अपन पिता पर हाथ उठा चुका है, इस किरदार में बाबिल बहुत वास्तिवक लगते हैं। एक-दो दृश्यों में उनकी शारीरिक भाषा और संवाद में इरफान की झलक नजर आती है, मगर पिता को कॉपी करते नहीं दिखते। भावनाओं को व्यक्त करने में बाबिल शानदार रहे हैं।
द रेलवे मेन के बाद लॉगआउट बाबिल के परिपक्व और विश्वास भरे अभिनय की मिसाल है। प्रत्यूष की बड़ी बहन साक्षी के किरदार में रसिका दुग्गल ने स्पेशल एपीयरेंस किया है। रसिका ने इरफान के साथ किस्सा में काम किया था।
काला-पानी वेब सीरीज की लेखन टीम का हिस्सा रहे निर्देशक अमित गोलानी ने स्क्रीनप्ले और अभिनय को संतुलन के साथ संभाला है। कम किरदारों के जरिए पर्दे पर रोमांच बनाये रखना आसान नहीं होता, अमित उसमें सफल रहे हैं।
फिल्म: लॉगआउट (Logout)
कलाकार: बाबिल खान, रसिका दुग्गल, गंधर्व दीवान
निर्देशक: अमित गोलानी
लेखक: विश्वपति सरकार
निर्माता: पोशमपा पिक्चर्स
प्लेटफॉर्म: जी5
अवधि: एक घंटा 48 मिनट
वर्डिक्ट: ***1/2 (साढ़े तीन स्टार)