मनोज वशिष्ठ, मुंबई। Nadaaniyan Review: ‘नादानियां’ जिस दुनिया की फिल्म है, अमूमन वो दुनिया इंडिया के टॉप कॉलेजों में भी नजर नहीं आती। अगर वो दुनिया है भी तो वो वैसी नहीं है, जैसी करण जौहर की फिल्मों में दिखाई देती है। ये दुनिया हॉलीवुड की यंग एडल्ट फिल्मों और शोज से चुराकर हमें दिखाई जा रही है।
मुझे नहीं लगता कि मुंबई के धीरूभाई अंबानी इंटरनेशनल स्कूल में भी वो दुनिया नजर आती होगी, जहां बॉलीवुड के सभी टॉप सितारों के बच्चे पढ़ते हैं। ज़माना बदल गया, मगर करण के स्कूलों की ये दुनिया नहीं बदली। वो अभी भी मिसेज ब्रिगेंजा पर ही अटकी है।
नेटफ्लिक्स पर रिलीज हुई नादानियां करण जौहर की रोमांटिक फिल्मों का रीहैश है, जो भावशून्य और फीकी है। इस फिल्म से सैफ अली खान और अमृता सिंह के बेटे इब्राहिम अली खान ने डेब्यू किया है। साथ में श्रीदेवी की बेटी खुशी कपूर हैं, जिनकी यह तीसरी फिल्म है।
द आर्चीज से ओटीटी डेब्यू के बाद खुशी इसी साल थिएटर्स में रिलीज हुई लवयापा में भी नजर आ चुकी हैं। यह फिल्म एक नादानी है, जिसे घर के आराम में ओटीटी पर भी देखना महंगा सौदा है।
बासी कहानी पर टिका नादानियों का ढांचा
नादानियां लेखन के स्तर पर कमजोर फिल्म है। कहानी में कुछ भी नया नहीं है। दो आर्थिक पृष्ठभूमि के लड़का-लड़की के बीच प्यार होता है। मगर, यहां प्यार का दुश्मन पैसा नहीं, लड़का-लड़की के बीच आई गलतफहमी है, जो लड़की के परिवार में एक घटना के बाद पैदा होती है।
फिल्म की कथाभूमि एनसीआर (दिल्ली-नोएडा) है, जहां के हाइ प्रोफाइल स्कूल फाल्कन में अर्जुन मेहता पढ़ने जाता है, क्योंकि यहां डिबेट टीम का कैप्टन बनने वाले को स्कॉलरशिप मिलती है। इसी स्कूल में उसे पिया जयसिंह मिलती है, जो देश की सबसे बड़ी लॉ फर्मों में से एक जयसिंह एंड संस चलाने वाले परिवार से है।
फिल्म की शुरुआत के साथ ही समझ में आ जाता है कि इसका अंजाम क्या होने वाला है, मगर फिर भी नवोदित कलाकारों से सजी फिल्म को खारिज करना ठीक नहीं लगता। जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती है, इसका ढांचा परत-दर-परत भरभराने लगता है। किरदारों के प्रस्तुतिकरण की विसंगतियां तड़पाने लगती हैं।
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कब तक ऐसे स्क्रीनप्लेस काम चलाएगा धर्मा?
नायक राष्ट्रीय स्तर का तैराकी चैंपियन है और इससे मिलने वाली स्कॉलरशिप का इस्तेमाल करके नेशनल लॉ कॉलेज में पढ़ना चाहता है, मगर इंट्रोडक्शन मोंटाज के बाद एक बार भी स्विमिंग करता दिखाई नहीं देता। करण के इस स्कूल में स्टूडेंट्स पढ़ाई करने के अलावा बाकी सब काम करते दिखते हैं।
उनकी फिल्मों का ‘अमीर’ तो अमीर ही होता है, मगर ‘गरीब’ कम से कम अपर मिडिल क्लास होता है, जिसकी लाइफस्टाइल का आज भी देश की अस्सी फीसदी आबादी सपना देखती है। KJo की फिल्मों में डॉक्टर और अंबानी टाइप के स्कूल में पढ़ाने वाली टीचर भी गरीबों की श्रेणी में आते हैं, जिनका अमीर क्लास का लड़का मजाक उड़ाता है।
करण की फिल्मों में डॉक्टर तो होता है, मगर वो कभी अपने क्लीनिक या अस्पताल जाते हुए नहीं दिखता। वो असली मरीज के बजाय बेटे के दिल टूटने का इलाज करता दिखता है बस। ये भी नहीं पता, वो कौन सा डॉक्टर है। स्कूल टीचर होने के नाम पर नायक की मां सिर्फ हाथ में किताबें लिए फाइव स्टार स्कूल के गलियारों में इधर से उधर जाते हुए नजर आती है।
स्कूल में क्या पढ़ाती है, वो भी नहीं मालूम। करण को क्यों लगता है कि उनकी इस फेक और हवा हवाई दुनिया को देखने के लिए दर्शक रिमोट उठाने की भी जहमत करेगा (अगर Netflix टीवी पर है तो)। ऐसी फिल्म, जिसमें न रोमांस की गहराई हो, न इमोशंस का पहाड़ हो, कोई ऐसी फिल्म क्यों देखेगा?
माफी के काबिल नहीं ये नादानियां
नादानियां (Nadaaniyan Review) एक बेहद खराब फिल्म है, जिसमें एक फ्रेम भी ऐसा नहीं, जिसे देखकर संतुष्टि का एहसास हो। बासी कहानी, घटिया अभिनय, सिर्फ फिल्म के बजट का शोऑफ करता स्क्रीनप्ले और नायक नायिका की कमजोर स्क्रीन प्रेजेंस। करण स्टूडेंट ऑफ द ईयर को कितनी बार और कितने तरीकों से फेटेंगे। बहुत बार करने लगी हैं ये फिल्में जनाब।
इब्राहिम अली खान को अभी पॉलिश की जरूरत है। भावाव्यक्ति है, मगर उनकी संवाद अदायगी में बहुत लोचा है। नोएडा या ग्रेटर नोएडा का लौंडा तो वो बिल्कुल नहीं लगते। ऐसा लगता है कि साउथ दिल्ली के कूल ब्रो को नोएडा में रहने के लिए मजबूर कर दिया गया है।
जिस तरह से नोएडा को लेकर पिया की मॉम महिमा चौधरी का सड़ा हुआ रिएक्शन आता है, वो तो देखकर लगता है कि राइटर का जमीन से कोई रिश्ता नहीं। चार हॉलीवुड फिल्में देखीं और लिख डाला स्क्रीनप्ले। Essay लिखकर लंदन के कालेज में एडमिशन लेने की फिक्र में पतला हुआ जा रहा नायक तो वहीं ज्यादा दिखता है।
माफी के साथ लिखना चाहूंगा, खुशी कपूर स्क्रीन पर बिल्कुल अच्छी नहीं लगीं। रोमांस में डूबी फिल्म में नायिका के किरदार में जो मासूमियत दिखनी चाहिए, वो खुशी अपने चेहरे पर नहीं ला पातीं। उन्हें पर्दे पर ‘दिल चुराने वाली’ दिखाने के लिए कैमरामैन को अभी और मेहनत करनी होगी।
अगर हीरोइन की बेस्ट फ्रेंड बनी कलाकार को देखने का मन ज्यादा करे तो समझ लीजिए कि नायिका के लिए खतरे की घंटी हैं। श्रीदेवी की बेटी हैं, इस पहचान से कितना दूर जा पाएंगी। उनके लिए सलाह है कि फिलहाल के लिए टाइट क्लोज अप शॉट्स अवॉइड करें। नादानियां, ना सिर्फ खराब बल्कि बचकानी फिल्म है, जिसे ओटीटी पर रिलीज करना भी एक नादानी है।
- फिल्म: नादानियां
- कलाकार: इब्राहिम अली खान, खुशी कपूर, महिमा चौधरी, दीया मिर्जा, जुगल हंसराज, सुनील शेट्टी, अर्चना पूरन सिंह, आलिया कुरैशी, अपूर्वा मखीजा आदि।
- निर्देशक: शौना गौतम
- निर्माता: धर्मेटिक एंटरटेनमेंट
- जॉनर: रोमांस
- प्लेटफॉर्म: नेटफ्लिक्स
- अवधि: 2 घंटा
- स्टार: एक