खास बातें
* मदन मोहन की विरासत को सहजने का मौका बनी वीर जारा
* 28 साल पुरानी धुनों को नये सिरे से किया गया रिकॉर्ड
* लता मंगेशकर थीं गीतों के लिए पहली च्वाइस
मुंबई। हिंदी सिनेमा की आइकॉनिक लव स्टोरी वीर जारा की रिलीज को आज (12 नवम्बर) 20 साल पूरे हो गये। यश चोपड़ा निर्देशित फिल्म की सफलता में बड़ा योगदान इसके संगीत का भी रहा। जिस वक्त हिंदी सिनेमा के संगीत पर पश्चिम का असर बढ़ रहा था, यश चोपड़ा ने वीर जारा के संगीत से हिंदी सिनेमा के गोल्डन एरा की याद दिला दी।
इस प्रयोग में उनका साथ दिया दिग्गज संगीतकार मदन मोहन के बेटे संजीव कोहली ने, जिन्होंने पिता की उन धुनों का इस्तेमाल संगीत रचना में किया, जिन्हें मदन मोहन अपने जीवनकाल में इस्तेमाल नहीं कर सके थे। कहते हैं, यश चोपड़ा को वीर जारा का संगीत इतना प्रिय था कि फिल्म का तेरे लिए गीत अंतिम सांस तक उनके मोबाइल की रिंग टोन बना रहा था।
फिल्म की 20वीं सालगिरह पर संजीव कोहली ने इस यादगार साउंडट्रैक के बनने की कहानी साझा की और बताया कि कैसे वीर-जारा के संगीत के जरिए उनका अपने पिता की विरासत को सम्मान देने का सपना पूरा हुआ।
बड़े प्रोडक्शन हाउसेज ने नहीं दिया मौका
संजीव बताते हैं, “वीर-जारा मेरे लिए एक ऐसा सपना था, जिसे कभी सच मानने की हिम्मत भी नहीं कर सका। यह एक बेटे के अपने पिता की संगीत विरासत के लिए देखे गए सपने का साकार रूप था। मेरे पिता, दिवंगत संगीतकार मदन मोहन का 1975 में केवल 51 साल की उम्र में निधन हो गया। उन्हें बहुत कुछ नया बनाने का मौका नहीं मिला। बड़े प्रोडक्शन हाउस और लोकप्रिय पुरस्कार उनसे हमेशा दूर रहे और यह बात उन्हें तकलीफ देती थी।”
संजीव आगे बताते हैं, “2003 में एक दिन यश जी ने मुझसे कहा कि छह साल बाद उन्होंने फिर से एक फिल्म निर्देशित करने का निर्णय लिया है, पर वह एक ऐसी फिल्म चाहते थे, जिसमें पुरानी दुनिया का संगीत हो- बिना पश्चिमी प्रभाव के, जिसमें भारतीय ध्वनियों पर आधारित सशक्त मेलोडी हो, 60 और 70 के दशक की तरह का संगीत, जैसे हीर रांझा और लैला मजनू का था।”
28 साल पुरानी धुनों का किया इस्तेमाल
यशजी ने बताया था कि उन्होंने कई समकालीन संगीतकारों के साथ बैठकें की थीं, पर उस पुरानी मधुरता का जादू नहीं मिल पाया, क्योंकि सभी ने अपने संगीत को आधुनिक पश्चिमी प्रभावों के साथ ढाल लिया था। यह सुनकर संजीव ने उनसे कहा कि मेरे पास कुछ पुराने समय की धुनें हैं, जो 28 सालों से नहीं सुनी गईं। यश जी इस विचार से उत्साहित थे और उन्होंने मुझे अपने पिता की अनसुने धुनों की खोज करने के लिए कहा।
संजीव ने इसके लिए करीब एक महीने तक पुराने टेप्स को सुना। पहले के दो-तीन कैसेट्स जो उनके पास थे, उनमें से 3-4 धुनें ऐसी लगीं, जो आज के दौर में भी चल सकती थीं। यश जी और आदित्य ने उन्हें सुना और उन्हें वो पसंद आईं। वे उन्हें नए ढंग से सुनना चाहते थे, क्योंकि पुराने रिकॉर्डिंग्स का साउंड बहुत कमजोर था।
30 में से 10 धुनों पर बने वीर जारा के गाने
संजीव बताते हैं, “मैंने तीन संगीतकारों की टीम बनाई और 30 धुनों को नए सिरे से रिकॉर्ड किया। मैंने खुद से डमी लिरिक्स लिखे और तीन युवा गायकों से उन्हें गवाया। जब यशजी और आदित्य ने इन धुनों को सुना, तो वे संतुष्ट थे। कुछ दिनों में उन्होंने 30 में से 10 गानों का चयन कर लिया और उन्हें अपनी स्क्रिप्ट में उपयुक्त स्थान दिया। मैं बहुत अभिभूत था।”
यश चोपड़ा चाहते थे कि वीर-जारा की धुनों को लता मंगेशकर की आवाज में ही पिरोया जाए, क्योंकि मदन मोहन की धुनें हमेशा लताजी के लिए ही बनाई जाती थीं।