Box Office: फिल्मों के फ्लॉप होने के लिए क्या वाकई जिम्मेदार है सिनेमाघरों की महंगाई? Multiplex Association ने आरोपों पर तोड़ी चुप्पी

मुंबई। बॉक्स ऑफिस पर ढेर होती फिल्मों के गिरते कारोबार के लिए जब कारणों की तलाश की जाती है तो अक्सर मल्टीप्लेक्सेज को जिम्मेदार ठहराया जाता है। कहा जाता है कि टिकटों के आसमान छूते दाम और खाने-पीने की चीजों की महंगाई फैमिली ऑडिएंस को थिएटर्स से दूर कर रही है।

मल्टीप्लेक्सेज पर ऐसे आरोप कई मीडिया रिपोर्ट्स में लगाये जाते रहे हैं, वहीं फिल्ममेकर्स भी अक्सर इस मुद्दे को हवा देते रहे हैं। मल्टीप्लेक्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने अब इस मुद्दे पर अपनी चुप्पी तोड़ी है और एक प्रेस रिलीज के माध्यम से पहली बार अपना पक्ष लोगों के बीच रखा है।

बुधवार को मल्टीप्लेक्स एसोसिएशन के प्रेसीडेंट कमल गियानचंदानी की ओर से जारी स्टेटमेंट में सिलसिलेवार ढंग से बताया गया है कि टिकटों और खाने-पीने के सामान की बढ़ती कीमतों का फिल्मों पर कितना असर पड़ता है। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि फिल्में सिर्फ इस वजह से फ्लॉप नहीं होतीं, क्योंकि सिनेमाघर महंगे हो गये हैं, बल्कि कंटेंट कितना अपीलिंग है, यह भी जरूरी है।

जनता के बीच जाना जरूरी

स्टेटमेंट में कहा गया है- सामान्य तौर पर हम ऐसे मसलों को सीधे बातचीत से हल करते हैं, जिनमें फिल्म निर्माता या वितरक शामिल हों, लेकिन अब हम ऐसी स्थिति में पहुंच गये हैं, जहां हमें जनता के बीच अपना पक्ष रखना जरूरी हो गया है। हाल ही में कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में टिकटों की ऊंची कीमत का मुद्दा उठाया गया था।

इसी संदर्भ में करण जौहर ने भी एग्जिबिटर्स को टिकटों और खाने-पीने के सामान की हाई प्राइसिंग के लिए जिम्मेदार ठहराया था। हमारा मानना है कि इस मामले में संतुलित विचार रखना जरूरी है।

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औसतन 1560 रुपये खर्च करता है एक परिवार

2023 में देश के सभी सिनेमाघरों में एवरेज टिकट प्राइस (एटीपी) 130 रुपये था। देश की सबसे बड़ी सिनेमा चेन पीवीआर आइनॉक्स में एटीपी 258 रुपये रहा, जबकि खाने-पीने के सामने पर प्रति व्यक्ति औसत खर्च (Average Spend Per Head) 132 रुपये रहा।

अब अगर चार सदस्यों वाले परिवार का एक फिल्म देखने का खर्च निकाला जाए तो ये 1560 रुपये आता है, मगर मीडिया रिपोर्ट्स में यह आंकड़ा 10 हजार रुपये बताया जा रहा है।

स्टेटमेंट में गियानचंदानी ने आगे कहा कि टिकटों की कीमत डायनामिक और फ्लेक्सिबल होती है, जो कई फैक्टर्स, मसलन क्या लोकेशन है, हफ्ते का कौन-सा दिन है, कौन-सी सीट ली गई है, फिल्म या सिनेमा का क्या फॉर्मेट है, पर निर्भर करती है।

समय-समय पर सिनेमा ऑफर और छूटों के जरिए दर्शकों को राहत दी जाती है। यह सब मिलाकर सिनेमा देखने पर आने वाला खर्च 50 फीसदी तक कम हो जाता है। सभी कीमतें ऑनलाइन उपलब्ध रहती हैं, ताकि पारदर्शिता बनी रहे।

कंटेंट से चलती हैं फिल्में, टिकट प्राइस से नहीं

स्टेंटमेंट में आगे कहा गया है- किसी भी चीज से ज्यादा जरूरी फैक्ट यह है कि फिल्में अपने कंटेंट और अपील की वजह से चलती हैं, सिर्फ कीमतें से नहीं। टिकटों की कीमत तय करने में कई कारक जिम्मेदार रहते हैं, जिनमें निर्माता, वितरक और एग्जिबिटर्स भी शामिल हैं।

इनमें से हर एक सदस्य टिकट की कीमत तय करने के लिए जिम्मेदार है। इसके साथ बाजार भी तय करता है। अगर कीमतें कम करने से इसमें शामिल हर किसी की कमाई बढ़ सकती होती तो सिनेमाघर मालिक बिना किसी के कहे एडजस्टमेंट कर देते।

कमल गियानचंदानी ने मौजूदा दौर में महंगाई को भी जिम्मेदार बताया। साथ ही कहा कि एग्जिबिटर्स फिर भी प्राइसिंग मॉडल के साथ फीडबैक के आधार पर प्रयोग करते रहते हैं। मौजूदा टिकट प्राइसिंग बाजार और प्रतिस्पर्धा को देखते हुए उपयुक्त है।